इस ब्लॉग़ में अरावली पर्वत श्रंखला में स्थित Historical Fort,Historical Temple,Prehistorical Place,Natural Place,Historical Dam,Wildlife sanctuary,Ancient Bodhist Place के बारे में जानकारी दी गयी है

गुरुवार, अप्रैल 15, 2021

दूधाखेड़ी माताजी का मंदिर भानपुरा मध्यप्रदेश

मध्य प्रदेश मालवा के मंदसौर जिले के भानपुरा तहसील से 12 किलोमीटर दूर भानपुरा गरोठ मार्ग पर जगत जननी केसरबाई महारानी दूधाखेड़ी माताजी का करीब 700 साल पुराना आस्था और विश्वास का सबसे बड़ा मंदिर है ! इस चमत्कारी मंदिर में दुधाखेड़ी माताजी अपने पंच रूप में विराजमान है,जहां हजारों की संख्या में खास तौर से लकवा ग्रस्त व अन्य शारीरिक व्याधियों से ग्रस्त मरीज कुछ ही दिनों में स्वस्थ होकर माता के गुणगान करते हुए जाते हैं!

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दुधाखेड़ी माताजी का मंदिर भानपुरा मध्यप्रदेश 

गांधी सागर बांध-भानपुरा (M. P. ) के बारे में जानने के लिये यहाँ click करें !


हमेशा की तरह नवरात्रा में मुझे दूधाखेड़ी माताजी के दरबार में जाने का मौका मिला दूधाखेड़ी माताजी का मंदिर मेरे गांव से करीब 10 किलोमीटर पड़ता है! मैं अपने घर से सुबह 9:00 बजे अपने एक साथी के साथ बाइक लेकर निकल पड़ा !

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर 


हर साल नवरात्रि के समय दूधाखेड़ी रास्ते में दो-तीन जगह श्रद्धालुओं द्वारा  निशुल्क भंडारे की व्यवस्था रहती थी,लेकिन इस साल कोरोना महामारी की वजह से यह व्यवस्था देखने को नहीं मिली ! 

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दूधाखेड़ी माताजी के अस्थायी आवास के बाहर का दृश्य 

गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचिन हिंगलाज गढ़ तथा गढ़ में स्थित हिंगलाज माता के मंदिर के बारे में जानने के लिये यहाँ क्लिक करें !


कई लोग हमें मार्ग में दूधाखेड़ी माताजी के मंदिर तक की पैदल यात्रा करते हुए मिले! इस साल भी कोरोनावायरस की महामारी की वजह से प्रशासन ने हर साल नवरात्रा में लगने वाले मेले के आयोजन को स्थगित कर दिया है, तथा बिना मास्क लगाए तथा उचित दूरी के मंदिर में प्रवेश निषेध है! हमने इन सभी बातों का ध्यान रखते हुए मंदिर में दर्शन किए ! आगे आइए जानते हैं, दूधाखेड़ी मंदिर के बारे में!

Dudhakhedi mandir bhanpura
दूधाखेड़ी माताजी का अस्थायी आवास स्थल 

Table of contents



दूधाखेड़ी माता जी का इतिहास!

रावत मीणा भाट की पोथी के अनुसार माता के परम भक्त मोडी गांव निवासी दूधाजी रावत को माता ने स्वप्न में आकर कहा था की आने वाले समय में परिवर्तन के कारण मैं अपना स्थान परिवर्तन करना चाहती हूं! प्राचीन समय में जहां आज माता का मंदिर है वहां घना जंगल हुआ करता था !और यहां एक व्यक्ति पेड़ काट रहा था उसी समय माता अपने देवी रूप में आई और कहा कि हरे पेड़ों को काटना लाखों लोगों को मारने के समान महापाप है! व्यक्ति ने पेड़ काटना बंद कर दिया और लौटने लगा !उस व्यक्ति को पश्चिमी क्षेत्र से वृद्धा आती हुई दिखाई दी और वहां वन से दूध की धारा बहने लगी! दूध की धारा देखने के लिए आसपास के क्षेत्रों से लोगों का जमावड़ा होने लगा! दूधा जी रावत ने इस स्थान पर आकर देखा तथा यहां माता की मूर्ति व मंदिर की स्थापना की! जिस जगह दूध की धारा बह रही थी आज वहां मां की प्रतिमा स्थापित है और कुंड बना हुआ है! तथा इस लोक देवी को दुधाखेड़ी माताजी के नाम से प्रसिद्धि मिली! दूधा जी रावत ने आजन्म देवी की पूजा अर्चना की,बाद में गोसाईयों को यहां की पूजा का भार सौंपा! गुसाइयों से तेलिया खेड़ी में बसने वाले नाथों ने पूजा भार ले लिया! वर्तमान में तेलिया खेड़ी गांव का नाम दूधाखेड़ी गांव हो गया !

मंदिर में जल रही है एक दिव्य ज्योति!

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दूधाखेड़ी माताजी मंदिर में जलती दिव्य ज्योति 

चिब्बड़ नाला-भानपुरा (M.P.)गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचिन चिब्बड़ माता के मंदिर तथा पाषाण कालीन शैलचित्र के बारे में जानने के लिये यहाँ click करें !


श्रद्धालुओं के लिए आशीर्वाद स्वरुप दूधाखेड़ी माताजी की प्रतिमा के सम्मुख प्राचीन काल से एक दिव्य ज्योति प्रज्वलित है! सुबह व शाम के समय मां की विशेष आरती व श्रंगार होता है, उस समय बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं!

प्राचीन राजा महाराजाओं ने करवाया था निर्माण कार्य यहाँ !

इंदौर की महारानी अहिल्याबाई अपने विश्वासपात्र एवं वीर  अंगरक्षिका जो सोंधिया राजपूत समाज से थी उनके साथ यहां दर्शन के लिए आई थी! तथा यहां एक धर्मशाला का निर्माण कराया था! महारानी अहिल्याबाई ने मूर्ति के यहां 4 खंबे लगाकर छाया भी करवाई थी!

इसके बाद यशवंत राव होलकर, शिवाजी राव होलकरतुकोजीराव होलकर,झालावाड़ दरबार जालिम सिंह तथा ग्वालियर नरेश सिंधिया ने भी यहां धर्मशाला निर्माण करवाया! सीतामऊ के राजा ने अपने राज्य में मंदिर के पुजारियों को खेती हेतू जमीन जागीर में दी थी!

कई राजा महाराजाओं की आराध्य देवी रही है दूधाखेड़ी माता!

लोक मान्यता के अनुसार पौराणिक नरेश मोरध्वज तथा कोटा के झाला जालिम सिंह की आराध्य देवी रही हैI

आधुनिक भारत के नेपोलियन कहे जाने वाले मराठा शाशक महाराजा यशवंतराव होलकर जब भी युद्ध में जाते थे तब माता के यहां आकर दर्शन करते थे! कहते हैं माता के यहां रखी उनकी तलवार अपने आप उठकर हाथ में आ जाती थी !उसी तलवार को लेकर वै युद्ध में प्रस्थान करते थे और अपने पास की तलवार माता जी के यहां रख देते थे! यशवंत राव होल्कर ऐसे सेनानायक थे जिन्होंने पराजय का स्वाद कभी नहीं चखा था!

आज भी यशवंतराव होल्कर की तलवार माताजी के मंदिर में दिवार पर टंगी हुई यहां देखी जा सकती है !

दोनों नवरात्रा में लगता है भव्य मेला !

प्रतिवर्ष चैत्र नवरात्रा और बड़े नवरात्रा में  यहां एक भव्य मेले का आयोजन होता है! मालवा, मेवाड़, हाडोती अंचल के दूरदराज गांवों से हजारों लोग पदयात्रा करते हुए दर्शन के लिए आते हैं! कई धार्मिक व्यक्ति मार्ग में भंडारे का आयोजन करते हैं!

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दूधाखेड़ी माताजी की पंचरुपिय दिव्य प्रतिमा 

गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित प्राचिन एवं ऐतिहासिक चतुर्भूज नाथ मंदिर तथा चतुर्भूज नाला में स्थित विश्व की सबसे लंबी पाषाणकालीन शेलचित्र श्रंखला के बारे में जानने के लिये यहाँ क्लिक करें !


नवरात्रा के समय माता के नौ रूप देखने को मिलता है! रोज नए रूप में माता अपने भक्तों को दर्शन देती है !मान्यता है कि माता की मूर्ति इतनी चमत्कारी है कि कोई भी भक्त माता की मूर्ति से आंख नहीं मिला पाता है! यहां आकर भक्तों को शारीरिक विकलांगता तथा मानसिक व्याधियों से मुक्ति मिल जाती है!

पहले बलि प्रथा का था रिवाज यहाँ !

पहले मंदिर में बलि प्रथा का रिवाज था! लेकिन करीब 40 साल पूर्व बलि प्रथा के दौरान आकाश से बिजली गिरी थी! और बलि के मवेशी बच गए !इस चमत्कार के बाद यहां बलि प्रथा खत्म कर दी गई इसके बाद यहां बलि के नाम पर जिंदा जानवर मुर्गा, बकरा आदि छोड़े जाने लगे !जानवरों की तादाद बढ़ने पर यहां मुर्गा, बकरा चिन्ह अंकित चांदी के सिक्के मन्नत पूरी होने के बाद चढ़ाए जाने लगे हैं!

वर्तमान समय में चल रहा है मंदिर का भव्य नव निर्माण !

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर 

गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचिन नागों के राजा तक्षक तथा आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि जी के निवास स्थान प्राचिन तक्षकेश्वर मंदिर तथा पवित्र झरने के बारे में जानने के लिये यहाँ क्लिक करें 


वर्तमान में  34 करोड़ 18 लाख रुपए की लागत से दुधाखेड़ी माताजी के भव्य मंदिर के नव निर्माण का कार्य  चल रहा है! माउंट आबू से लाल पत्थरों को तराश कर लाया जा रहा है!

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर 


लेकिन बहुत ही निराशा वाली बात है की मंदिर के नवनिर्माण का कार्य बहुत ही धीमी गति से चल रहा है और कार्य चलते हुवे लगभग पांच वर्ष हो चुके है !

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर 

दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत मालाओं में से एक अरावली पर्वत के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें!


न जाने कब मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा होगा लेकिन उम्मीद है की कभी न कभी तो मंदिर के निर्माण का कार्य पूरा होगा !

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर


खैर वर्तमान में काफी लम्बे समय से दुधाखेड़ी माताजी की प्रतिमा एक टिनशेड तिरपाल के निचे विराजीत है और आगे भी माताजी को कितने लम्बे समय और तिरपाल में रहना पड़ सकता है इस बात की कोई गारंटी नहीं है !

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर

मंदिर परिसर में एक करोड़ 41 लाख रुपए की लागत से एक फिजियोथैरेपी सेंटर बनाया जाना प्रस्तावित है !

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर


मंदिर परिसर में आंतरिक कार्यों और हाई मास्क लगाने के लिए 15 लाख रुपए तथा पेयजल की बड़ी टंकी के निर्माण के लिए 2 लाख 70 हजार रुपए दिया जाना प्रस्तावित है! उम्मीद है जल्द ही भक्तों को माता के भव्य मंदिर के दर्शन करने का सौभाग्य मिलेगा!

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दूधाखेड़ी माताजी का भव्य नवनिर्माणाधीन मंदिर


कैसे जाएं  !

दूधाखेड़ी माताजी का मंदिर मध्य प्रदेश मालवा मंदसौर जिले के भानपुरा तहसील का हिस्सा है! नजदीकी रेलवे स्टेशन दिल्ली मुंबई रेल मार्ग पर स्थित भवानीमंडी जो कि 10 किलोमीटर है ! यहां से बस मार्ग अथवा निजी वाहन द्वारा दूधाखेड़ी मंदिर आसानी से पहुंचा जा सकता है!

इस लेख के माध्यम से मैंने भानपुरा के ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल दूधाखेड़ी मंदिर के बारे में विस्तृत जानकारी दी है !उम्मीद करता हूं कि आपको यह लेख पसंद आये !

आप अपनी राय कमेंट बॉक्स में दे सकते हैं !

पोस्ट पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद !

 


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