इस ब्लॉग़ में अरावली पर्वत श्रंखला में स्थित Historical Fort,Historical Temple,Prehistorical Place,Natural Place,Historical Dam,Wildlife sanctuary,Ancient Bodhist Place के बारे में जानकारी दी गयी है
मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले की भानपुरा तहसील से 26 किलोमीटर दूर अरावली पहाड़ियों में स्थित नावली गांव से 12 KM दूर घने अभयारण्य से घिरी पहाड़ी पर बना हुआ प्राचीन और ऐतिहासिक हिंगलाजगढ़ किला (देवी माता के नाम पर) जो तीन और घने जंगल में है।
हिंगलाजगढ़ किला-भानपुरा में स्थित हिंगलाज माता कि प्रतिमा
80-100 फुट गहरा और 10 किलोमीटर लंबा वृत्ताकार मंडलेश्वरी नाला और तक्षकेश्वर नाला जो वन्य जीवोँ और वनस्पतियों से घिरा हुवा सामरिक दृष्टि से एक सुरक्षित दुर्ग है।
घर से निकलने के बाद हमारा अगला पड़ाव एक पेट्रोल पंप था जो भानपुरा गांधी सागर मार्ग में 1 किलोमीटर दूर था! वहाँ हम रुके और हमने पेट्रोल भरवाया ! लगभग 8 किलोमीटर चलने के बाद हमने संग्राम घाट कि 1 किलोमीटर चढ़ाई पार की! अब हम गांधी सागर अभ्यारण में प्रवेश कर चुके थे! यहाँ रोज़डा ग्रस्त क्षेत्र होने का बोर्ड लगा था।
संग्राम घाट पर लगा हुआ बोर्ड
कुछ किलोमीटर और चलने के बाद हम उत्तर दिशा की ओर नावली मार्ग पर मुड़े! लगभग 12 किलोमीटर चलते हुवे हमने दो गाँवों को पार किया यहाँ तक पक्की सड़क थी! इसके बाद कच्ची सड़क शुरू होती है, एक सड़क हिंगलाज गढ़ की तरफ जाती है!
लगभग 12 किलोमीटर उबड़ खाबड़ पथरीले रास्ते और घने जंगल से होते हुवे हम हिंगलाजगढ़ गेट पर पहुंचे! मार्ग में हमें कई वन्यजीव दिखायी दिए गए हैं! किले मे पहुंचकर सबसे पहले हमने पेट भर कर पानी पिया फिर प्रवेश किया! किस्मत से वहाँ मेला लगा हुआ था और खाने पीने की कुछ दुकानें लगी थी! एक दुकान पर हमने पेटभर कर समोसे खाए तब जाकर जान में जान आई! हमने सुबह से खाना नहीं खाया था! और दिन के 3:00 बजे थे! मुझे एक सीख मिली कि हमेशा खाने का और पीने का पानी उचित मात्रा में रखना है! खैर अब हम पूरी तरह से तैयार थे किला देखने के लिए!
परमार काल में यह दुर्ग अपने वैभव के चरम पर था। किले में विभिन्न कालखंडों की मूर्तियों की कलाकृतियाँ आज भी मौजूद हैं। हिंगलाजगढ़ किला लगभग 800 साल तक गुप्त और परमार काल के दौरान मूर्ति शिल्प कला का मुख्य केंद्र रहा है।
किले में मिली सबसे पुरानी मूर्तियां जो 1600 साल पुरानी हैं और चौथी व पांचवीं शताब्दी की बताई जाती हैं। यहां से प्राप्त नंदी और उमा-महेश्वर की प्रतिमाओ ने फ्रांस और वाशिंगटन में हुए भारत फेस्टिवल में आंतरिक मंच पर ख्याति प्राप्त की है।
प्राचीन इतिहास स्पष्ट नहीं है फिर भी ऐसा माना जाता है की हिंगलाजगढ़ का निर्माण दसवीं शताब्दी में परमार कालिन राजाओं ने किया था। इसके बाद यहां चंद्रावतों का शासन आया फिर होलकर राज्य का शासन आया तो यशवंतराव होलकर ने इसका पुननिर्माण करवा कर इस किले को छावनी के रूप में इस्तेमाल किया।
किले से मिली प्राचिनलिपी के शिलाखंडो से किले के प्राचीन इतिहास के बारे में पता चलता है।जिसके अनुसार सैकड़ों वर्ष पहले चित्तौड़ पर शासन करने वाली तक्ष या तक्षक जाति का संबंध मोर्य जनजातिसे था। परमार इसी मोर्य जनजाति के वंशज थे।
परमार काल में यह गढ़ सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था ! परमार राजाओं ने इसे सुदृढ़ बनाने का काम किया। 1281 में हाड़ा शासक हालू ने इस किले पर कब्जा कर लिया और बाद में यह किला चंद्रावत शासकों के अधिकार में आया ! 1773 में महारानी अहिल्या बाई होल्करने लक्ष्मण सिंह चंद्रावत से जीत कर हिंगलाज गढ़ पर आधिपत्य जमा लिया।
होलकर काल में यहाँ कई इमारतों का पुनरुद्धार किया गया, जिसमें हिंगलाज माता मंदिर, राम मंदिर और शिव मंदिर प्रमुख हैं। हालांकि इस किले पर कई राजवंशों ने अपना आधिपत्य जमाया, लेकिन किसी ने भी इसे अपनी स्थायी राजधानी नहीं बनाया। एकांत व निर्जन स्थान पर होने की वजह से इस किले को छुपने या अपना वर्चस्व बढ़ाने में अधिक किया!
ब्रिटिश काल के दौरान इस किले का उपयोग एकांत और चारों ओर जंगल से घिरा होने के कारण एक शिकारगा और आरामगाह के तौर पर किया गया!
हिंगलाजगढ़ का निर्माण छावनी बनाने के अनुसार किया गया था। इसमें चार पाटनपोल, सूरजपोल, कटरापोल और मंडलेश्वरी पोल के नाम से चार दरवाजे हैं। पहले तीन दरवाजे पूर्वमुखी और मंडलेश्वरी दरवाजा पश्चिम मुखी है। किले में पानी के भण्डारण हेतू सूरजकुंड नामक जलाशय को भी बनाया गया था!
हिंगलाज माता क्षत्रियो की कुलदेवी मानी जाती है! ऐसा माना जाता है कि मौर्य शासकों ने हिंगलाज मंदिर की स्थापना की थी क्योंकि वह उनकी कुलदेवी थी !किले के निर्माण से पहले यह जगह "हिंगलाज टेकरी" के नाम से जानी जाती थी ! और बाद में मौर्य शासकों ने यहां एक गढ़ का निर्माण करवाया और इस स्थान को हिंगलाज गढ़ या हिंगलाज का किला के नाम से जाना गया! मंदिर के अंदर हिंगलाज देवी कीएक प्राचीन प्रतिमा स्थापित है! मंदिर के दक्षिण भाग में स्थित है। यहां नवरात्र में 9 दिनों तक मेला लगता है और हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं!
हिंगलाज माता मंदिर
हिंगलाज माता मंदिर बोर्ड
किले के अन्य पर्यटन स्थल!
राम मंदिर
रामजी मंदिर
हनुमान मंदिर
हनुमान जी मंदिर
शिव मंदिर
प्राचीन शिव मंदिर
दरबार कक्ष
रानी का मल
फतेहबुर्ज
तीर्थम (दो मीनारे)
गोत्री भील स्मारक
संग्रहालय
संग्रहालय में बिखरी पुरातन सम्पदा
परमार कालीन पुरातन संपदा
हिंगलाज गढ़ का द्वार
हिंगलाज गढ़ का बुर्ज
मंडलेश्वरी द्वार
किले की प्राचीर से लिया गया दृश्य था
हिंगलाज गढ़ का रास्ता
किले कि प्राचीर से लिया गया दृश्य था
फतेह बुर्ज से लिया गया दृश्य
दिवार में लगीं मूर्तियां
बुर्ज से लिया गया दृश्य
निरिक्षण करते हुवे
दीवार में लगी प्रतिमा
बिखरी हुई पुरातन संपदा
राम मंदिर और हनुमान मंदिर
यात्रा के दौरान सावधानियाँ!
अकेले न कोई जानकर को साथ ले ले!
उचित मात्रा में पानी के साथ रखें और खाने पिने का प्रबन्ध रखें!
यदि आप उच्च या निम्न रक्त चाप रोगी हैं तो जाने से बचे या
अपने साथ उचित दवाई का प्रबंधन रखें!
ये क्षेत्र अभयारण्य का हिस्सा है और यहां कई जंगली जानवरों तेंदुआ, भालू, लकड़बग्गा आदि का निवास है! हमेशा तो सावधान रहो!
कब जा सकते हैं!
वैसे तो इस स्थान पर किसी भी मौसम में जा सकते हैं लेकिन वर्षा ऋतू में रास्ते में कीचड़ हो सकता है! गर्मी का मौसम सूखा होने से यहाँ तेज गर्मी होती है! अक्टूबर महीने से मार्च महीने तक मौसम ठंडा होने से सबसे अनुकूल घटनाएं होती हैं!
कैसे जा सकते है!
भानपुरा मध्य प्रदेश मंदसौर जिले में है जो राजस्थान झालावाड़ जिले से लगा है! नजदीक रेलवे स्टेशन भवानी मंडी जो कि 25 किलोमीटर गिरता है और रामगंज मंडी जो कि 40 किलोमीटर पड़ता है! यहाँ से बस मार्ग द्वारा भानपुरा आसानी से दूर जा सकता है! और भानपुरा से व्यक्तिगत वाहन बाइक या कार द्वारा हिंगलाजगढ़ तक जा सकते हैं!
इस लेख के माध्यम से मैंने अरावली पर्वत में स्थित मालवा की पौराणिक और ऐतिहासिक धरोहर हिंगलाजगढ़ के बारे में विस्तृत जानकारी दी है! उम्मीद करता हूँ कि आपको यह लेख पसंद आये!
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ब्लॉग पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
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Awesome
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंNice blog
जवाब देंहटाएंNice blog
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
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