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रविवार, मार्च 21, 2021

चतुर्भुजनाला भानपुरा के पाषाणकालीन शैलचित्र

भानपुरा से करीब 30 किलोमीटर दूर गांधी सागर मार्ग अरावली पर्वतमाला तथा गांधीसागर वन्यजीव अभ्यारण क्षेत्र में स्थित करीब 10 वीं शताब्दी में बना चतुर्भुजनाथ मंदिर अद्भुत व ऐतिहासिक है !

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चतुर्भुजनाला भानपुरा में स्थित चतुर्भुज नाथ कि प्रतिमा  


पास ही एक बारहमासी नाला बहता है जिसे चतुर्भुज नाला कहा जाता है! इस नाले के रॉक शेल्टर्स में दुनिया की सबसे लंबी (लगभग पाँच किलोमीटर लंबी ) प्रागैतिहासिक कालीन शैलचित्र श्रंखला मौजूद है! जिसमें ढाई हजार से ज्यादा शैलचित्र मौजूद है,जो प्रागैतिहासिक कालीन मानवों की दैनिक जीवन क्रीड़ा प्रस्तुत करती है!

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चतुर्भुजनाला भानपुरा के पाषाणकालीन शैलचित्र 
दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत मालाओं में से एक अरावली पर्वत के बारे में जानने के लिए यहां क्लिक करें!


मैंने कल शाम को ही अपने साथ धागा मिल में कार्य कर चुके संजू को फोन करके बता दिया था की आज हमें चतुर्भूज नाला रॉक पेंटिंग स्थल पर चलना है संजू एक अच्छा बाइक राइडर होने के साथ साथ मेरा भरोसेमंद व्यक्ति भी है !

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योजनानुसार हम बाइक लेकर घर से सुबह 10 बजे चल पड़े और करीब 11 बजे भानपुरा पहुंचकर सबसे पहले हमने अपनी पसंदीदा दुकान पर समोसे का नाश्ता किया नाश्ता करने का मौका हम कभी भी नहीं छोड़ते!

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भानपुरा में नाश्ता करते हुए 


खैर अब हम गांधीसागर मार्ग में पड़ने वाले पेट्रोलपंप से पेट्रोल भरवाकर लगभग 35 किलोमीटर हमारी मंजिल चतुर्भूज नाला रॉक पेंटिंग की ओर चल पड़े !

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चतुर्भुजनाला भानपुरा के पाषाणकालीन शैलचित्र 


मार्ग में करीब एक घंटा चलने के बाद हमें एक चाय की दुकान मिली जहाँ बाइक रोककर हमने चाय पी और रास्ता पूछा!यहाँ के लोग हमें बहुत ही फ्रेंडली और हेल्पफुल लगे उन लोगों ने हमें बताया की 3 किलोमीटर जाने के बाद एक बहुत बड़ा बोर्ड नजर आएगा वहाँ से 6 किलोमीटर उत्तर दिशा की और एक कच्चा रास्ता है जो की काफी घने जंगल के भीतर जाता है !

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चतुर्भुजनाला भानपुरा के पाषाणकालीन शैलचित्र 


गांधी सागर बांध-भानपुरा (M. P. ) के बारे में जानने के लिये यहाँ click करें !


उन लोगों के बताये अनुसार हम आगे चल पड़े आगे हमें एक बोर्ड नजर आया जो रास्ता बता रहा था वहाँ से हम उत्तर दिशा की और मुड़े आगे का कच्चा रास्ता बेहद डरावना था मार्ग में कोई व्यक्ति नजर नहीं आया !दो जगह हमें नीलगायों के झुण्ड मिले जिनसे हमने एक सुरक्षित दूरी बनाकर रखी करीब 6 किलोमीटर चलने के बाद हमें एक मंदिर नजर आया इस मंदिर का नाम चतुर्भूज नाथ मंदिर है !

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चतुर्भूज नाला मार्ग में दिखाई दी नीलगाय 

चिब्बड़ नाला-भानपुरा (M.P.)गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचिन चिब्बड़ माता के मंदिर तथा पाषाण कालीन शैलचित्र के बारे में जानने के लिये यहाँ click करें !


बताया जाता है की यह मंदिर हजारों साल पुराना है मंदिर या मंदिर के आसपास कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था तथा यह मंदिर चारों और से बंद था हमने मंदिर की दीवार में लगी जाली से झांक कर चतुर्भूज नाथ के दर्शन किये और श्रद्धा अनुसार चढ़ावा चढ़ाया और कुछ देर वहीँ छाया में विश्राम किया !

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चतुर्भूज नाथ मंदिर 

Table of contents



आइये जानते है चतुर्भूज नाथ मंदिर के बारे में !


चतुर्भुज नाथ मंदिर!

मंदिर का इतिहास स्पष्ट नहीं है फिर भी ऐसा माना जाता है कि इस चतुर्भुज नाथ मंदिर का निर्माण आठवीं से दसवीं  शताब्दी के लगभग होना बताया जाता है और साथ ही इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि समय-समय पर यहां के स्थानीय शासक महाराव यशवंत राव होलकर के द्वारा युद्ध में जाने से पहले यहां पर अनुष्ठान किए जाते थे

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चतुर्भूज नाथ मंदिर 

गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचिन नागों के राजा तक्षक तथा आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि जी के निवास स्थान प्राचिन तक्षकेश्वर मंदिर तथा पवित्र झरने के बारे में जानने के लिये यहाँ क्लिक करें 



मंदिर में भगवान विष्णु की एक सोई हुई प्रतिमा है जो करीब 1000 साल पुरानी है !जिसमे चार भुजाएं होने के कारण  चतुर्भुज नाथ कहा गया ! चेहरे पर अद्भुत मुस्कुराहट लिए हुए उनके पैरों के पास एक सेवक को दिखाया गया है स्थानीय मान्यता अनुसार यह भगवान के पैरों से कांटा निकालता  हुआ  अलौकिक तथा अविस्मरणीय दृश्य प्रस्तुत करता है!

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मंदिर में स्थित चतुर्भूज नाथ की प्रतिमा 


मानसून के दौरान यहां चारों तरफ हरियाली और पास में चतुर्भुज नाला पानी से भरा हुआ  बहुत ही सुंदर दृश्य प्रस्तुत करता है और यही कारण है कि यहां देश-विदेश से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं!


चतुर्भुज नाथ की पवित्र जल धारा!

चतुर्भुज नाथ मंदिर के नीचे की तरफ एक प्राकृतिक जलधारा मौजूद है जिसमें से लगातार जल प्रवाहित होता रहता है भीषण गर्मी में भी यह जलधारा निर्विरोध रूप से बहती रहती है इसमें एक लोहे का पाइप लगा दिया गया है जिससे होकर जलधारा बाहर आती है इस जलधारा का प्रयोग पीने के पानी के रूप में किया जाता है!

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ऐसा कहा जाता है कि यह जलधारा भगवान चतुर्भुज नाथ के चरणों से होकर आ रही है इसलिए अमृत समान गुणकारी मानी जाती है यहां आकर हमने भी इस अमृत समान जल का उपयोग करके अपने प्यास बुझाई और एक बोतल पानी भर लिया!

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गांधीसागर वन्यजीव अभयारण्य में स्थित ऐतिहासिक एवं प्राचिन हिंगलाज गढ़ तथा गढ़ में स्थित हिंगलाज माता के मंदिर के बारे में जानने के लिये यहाँ क्लिक करें !


चतुर्भुज नाला !

पानी पीने के बाद हम करीब 2 घंटे तक इस नाले के चारों ओर घूमते रहे और शैल चित्रों की खोज करते रहे हमें कई जगह शैल चित्र मिले परंतु असली जगह की हमें जानकारी नहीं थी बाद में हमें रास्ते में एक छोटा सा पत्थर दिखाई दिया जिस पर 2 किलोमीटर दूर शेलचित्र होने का संकेत दर्शाया हुवा था !

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चतुर्भूज नाला मार्ग बताता एक पत्थर 


चतुर्भुज नाला में प्राकृतिक रूप से जल धाराए बहती रहती है जो देखने में मानव निर्मित प्रतीत होती है !लेकिन असल में यह जल धाराए प्राकृतिक है! यहां कई प्रजाति की मछलियां पाई जाती है !जिन्हें लोग दाना खिलाते हुए देखे जा सकते हैं!

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चतुर्भूज नाला 

गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य की जानकारी व घूमने के स्थान के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें !

चतुर्भुजनाला पाषाणकालीन शैलचित्र स्थल!


मार्ग में दर्शाए गए बोर्ड के अनुसार 2 किलोमीटर चलने के बाद हमें एक बड़ा बोर्ड नजर आया जो चतुर्भुज नाला रॉक पेंटिंग लिखा हुआ दर्शा रहा था! 

नाले में उतरने का रास्ता बहुत ही खतरनाक था जरा सी चूक हो जाने पर चोट लगने का खतरा बना रहता है !

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चतुर्भूज नाले का खतरनाक मार्ग 

मालवा के प्रसिद्ध धार्मिक व ऐतिहासिक दूधाखेड़ी माताजी का मंदिर भानपुरा मध्यप्रदेश के बारे में जानने के लिए यहाँ क्लिक करें !

नाले में नीचे उतरने के बाद काफी दूर कुछ लोग दिखाई दिए पास आने पर पता चला कि वे लोग "रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया" के लोग थे जिनकी ड्यूटी यहाँ लगाई गई थी ! इस जगह के रखरखाव और निगरानी के लिए कुल 5 लोगों की  ड्यूटी यहां लगी हुई है !सही तरीके से पेश आने पर यह लोग फ्रेंडली होते हैं लेकिन कहीं ना कहीं इन लोगों की कोशिश होती है कि आप यहां से जल्द से जल्द देख कर निकल जाए एक निश्चित दूरी तक यह लोग आपके साथ होते हैं और आगे जाने के लिए मना कर देते हैं !

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चतुर्भूज नाले में R.A.S.I.के कर्मचारीयों के साथ 


यहां पर रजिस्टर में नाम दर्ज किया जाता है तथा देखने का कोई चार्ज नहीं है ! शैलचित्र देखने का समय सुबह 9:00 से 5:00 बजे तक का है !

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R.A.S.I.के कर्मचारी रजिस्टर में नाम दर्ज करते हुवे 


इन शेल चित्रों को सर्वप्रथम एक स्थानीय शिक्षक डॉ रमेश कुमार पंचोली व उनके साथियों ने 1973 में भ्रमण के दौरान खोजा था!जो चतुर्भुज नाला के शेल आश्रयो में स्थित है! कार्बन डेटिंग के अनुसार यह शैल चित्र तकरीबन 35000 साल पुराने बताए जाते हैं ! जो यह साबित करता है कि यहां कभी प्रागैतिहासिक काल के दौरान आदिमानव का बसेरा रहा होगा और उनके द्वारा ही यह शेल चित्र बनाये गये होंगे !रॉक आर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया(RASI) ने जनवरी 2007 में इसे दुनिया में "सबसे लंबी शैल चित्र श्रंखला "के रूप में वर्णित किया है!

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जानवर को पिंजरे से निकालते हुवे 


शैल चित्रों का विषय वस्तु मनुष्य तथा जानवर है!इनमें हाथी, बाइसन,बाघ,तेंदुए,गेंडे,हिरण,लोमड़ी,गाय,बैल,ऊंट तथा पानी के जानवर है !

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हिरन के पेट में गर्भधारण का शैलचित्र 


शेल चित्रों का रंग व बनावट असमान है !ज्यादातर शेल चित्र लाल रंग गेरू रंग कुछ चमकीले तथा अन्य फिके लाल सफेद तथा काले हैं!

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जानवर को रस्सी से पकड़ते हुवे दर्शाया गया है साथ में जानवर की खाल की डिज़ाइन का शैलचित्र 


कई जगह शेल चित्रों में दैनिक जीवन की झलक दिखाई  दिखाई गई है,जैसे चरवाहा,शिकार करना,मवेशी की सवारी आदि !

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खुशियाँ मनाते हुवे दर्शाया गया शेलचित्र 


शैल चित्रों को बनाने में जानवरों के रक्त, हड्डियों का चूर्ण  तथा चर्बी का उपयोग किया गया लगता है!

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बारहसिंगा को दर्शाया गया शैलचित्र 


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हाथों में हल, फरसा तथा अन्य हथियार उठाये हुवे 

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खरगोश और बिच्छू को दर्शाया गया शैलचित्र 

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जानवरो के बच्चे अपनी माँ का दूध पीते हुवे और चारा खाते हुवे 

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डांडिया के साथ शैल नृत्य तथा कावड़ को उठाये हुवे दर्शाया गया है 

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आश्चर्य होता है उस ज़माने में चौसर जैसा कोई खेल खेला जाता था 


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हाथ में मशाल लिए चार घोड़ो वाले रथ की शाही सवारी 

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दैनिक दिनचर्या सिर पर लकड़ी का गट्ठर उठाये हुवे 

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जानवरों के सहवास को दर्शाते हुवे शैलचित्र 

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शाही सेना हाथी, घोडा के साथ सवारी 

ढोल बजाकर पाषाण कालीन हथियार प्रदर्शन दर्शाते हुवे 


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चढ़ने के लिए सीढ़ी को दर्शाया गया है 

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दो घोड़ो वाले रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना करते हुवे शैलचित्र 

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कुछ और दैनिक क्रिया दर्शाते हुवे शैलचित्र 

दोस्तों विश्वास नहीं होता है कि आज से 35000 साल पहले हमारे इस क्षेत्र में कितनी उन्नत मानव सभ्यता निवास करती थी जिनको पहियों के बारे में भी जानकारी थी और चौसर जैसे खेलों को भी जानती थी!

खैर, इस जगह से हम 5:00 बजे निकल चुके थे क्योंकि रास्ता बहुत ही खराब था और जंगली जानवरों का भी डर था ! घर पहुंचते समय अंधेरा हो चुका था!

यात्रा के दौरान सावधानियाँ !

  • अकेले न जाएं किसी जानकार को साथ लेकर जाए !
  • उचित मात्रा में पीने का पानी साथ रखें व खाने पिने का प्रबन्ध रखें !
  • यदि आप उच्च या निम्न रक्त चाप रोगी हैं तो जाने से बचे !
  • अपने साथ उचित दवाई गोलियों का प्रबंध रखें 
  • ये क्षेत्र वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है तथा यहां कई जंगली  जानवर तेंदुआ, भालू, लकड़बग्गा आदि का निवास है ! अतःहमेशा सावधान रहे !


कब जाएं !

वैसे तो इस स्थान पर किसी भी मौसम में जा सकते हैं परन्तु वर्षा ऋतू में रास्ता थोड़ा ख़राब हो सकता है !गर्मी के मौसम मे वातावरण शुष्क होने से तेज गर्मी होती है ! अक्टूबर माह से मार्च माह तक मौसम ठंडा होने से जाना सबसे अनुकूल होता है !


कैसे जाएं  !

भानपुरा मालवा मध्य प्रदेश मंदसौर जिले का हिस्सा है जो  राजस्थान झालावाड़ जिले से सटा हुआ है! नजदीकी रेलवे स्टेशन दिल्ली मुंबई रेल मार्ग पर स्थित भवानी मंडी है जो कि 25 किलोमीटर पड़ता है और रामगंज मंडी जो कि 40 किलोमीटर पड़ता है! यहां से बस मार्ग द्वारा भानपुरा आसानी से पहुंचा जा सकता है!और भानपुरा से किसी व्यक्तिगत वाहन बाइक या कार द्वारा चतुर्भूज नाला तक जा सकते हैं !


इस लेख के माध्यम से मैंने अरावली पहाड़ में स्थित मालवा कि  ऐतिहासिक तथा प्रागेतिहासिक धरोहर चतुर्भुज मंदिर और चतुर्भूज नाला में स्थित प्रागेतिहासिक शैलचित्र  के बारे में विस्तृत जानकारी दी है !उम्मीद करता हूं कि आपको यह लेख पसंद आये !

 

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